26 साल की श्रद्धा वाकर मुंबई के मलाड इलाके में स्थित मल्टीनेशनल कंपनी के काल सेंटर में काम करती थीं . आफताब भी यहीं पर काम करता था .
जब दोनों के घरों में इस रिश्ते के बारे में पता चला तो श्रद्धा का परिवार इसके लिए तैयार नहीं था .एक बड़ी वजह थी कि आफताब मुस्लिम लड़का था और श्रद्धा हिंदू ,लेकिन दोनों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था . वो अपने प्यार के आगे घरवालों की सुनने के लिए तैयार नहीं थे, लिहाजा दोनों ने इसी साल मई महीने के शुरू में मुंबई छोड़ने का फैसला किया . कुछ दिन दोनों हरिद्वार, हिमाचल से लेकर कई जगहों पर घूमते रहे, लेकिन आखिकार दिल्ली के महरौली छतरपुर इलाके में आकर बस गए.
पैसा की आमदनी कम होने के कारण अब दोनों की छोटी-छोटी बातों पर अक्सर लड़ाई होती रहती थी.मात्र एक महीने में दोनों की लड़ाई मारपीट तक पहुँच गयी , श्रद्धा आफताब से शादी करना चाहती थी जिस्ले लिए आफताब राज़ी नहीं हो रहा था, श्रद्धा अपनी नौकरी खोने के लिए अक्सर आफ़ताब को जिम्मेदार ठहराती थी, आखिरकार इस बात से गुस्साएं आफताब ने श्रद्धा को मारने की प्लानिंग ही रच डाली. मौका पाकर उसने श्रद्धा की गला दबा कर मार डाला. उसने श्रद्धा की बॉडी को बाथरूम में आरी से 35 टुकड़े करके, अपने घर में रखे .इसके लिए आफताब एक नया बड़ा फ्रिज खरीदकर लाया.
आफताब फिर रोज़ रात में 2 उठकर महरोली के जंगलों जाकर टुकड़ों को जानवरो के पास फेंक देता था ,जुलाई के अंत तक शरीर के सारे टुकड़ों को ठिकाने लगाने के बाद उसने कमरा बदल लिया था. अब वो दूसरी जगह पर रहने लगा था .
श्रद्धा की अपने परिवार वालों से बात नहीं होती थी, लेकिन फिर भी उसके परिवार वाले को उसके बारे में सोशल मीडिया से अपटेड मिलता रहता था . लेकिन दो-तीन महीनों से ऐसा नहीं हो रहा था । लिहाजा उसके श्रद्धा के पिता विकाश मदान वाकर को शक हुआ .उन्हें ये तो पता था कि श्रद्धा दिल्ली में महरौली में रह रही है, लेकिन उन्हें उसके घर का पता नहीं मालूम था . काफी मशक्कत के बाद श्रद्धा के पिता विकास मदान वाकर ने घर का पता खोज निकाला, लेकिन महरौली के फ्लैट पर ताला लगा था . पता चला कि ये कमरा तो कई दिनों सें बंद है और किरायदार अब कहीं और रहता है .
8 नवंबर को आखिकार उसके पिता ने महरौली थाने में मुकदमा दर्ज करवाया और फिर पुलिस ने आफताब को टेक्निकल सर्विलांस के आधार पर अरेस्ट कर लिया.
आफताब ने पुलिस को श्रद्धा से दोस्ती से लेकर उसके टुकड़ों को जंगल में फेकने तक की सारी बात बताई और अपना जुर्म कबूल कर लिया .
आफताब ने कत्ल के बाद रणनीति के तहत वारदात को छिपाने की कोशिश की, जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रहा . परिजन अगर श्रद्धा की खोजबीन न करते तो वह पुलिस के हत्थे न चढ़ता .