अविनाश दुबे,रायपुर। ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनके नाम, उनके धर्म और उनकी निजी ज़िंदगी में जहां-जहां भारत लिखा है, उसे इस तरह रेखांकित किया जा रहा है मानो ऋषि एक मिसाइल हों, जिसे भारत में तैयार किया गया और 200 साल की ग़ुलामी का बदला लेने के लिए ब्रिटेन पर दाग दिया गया. कोई उनके हाथ में बंधे कलावे की तस्वीर पर गोला बना रहा है, तो कोई प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी मॉर्फ्ड तस्वीरों को शेयर कर रहा है.इस कोलाहल में बड़े सलीके से ये सवाल भुला दिया गया कि ऋषि सुनक की यात्रा और उनकी सफलता में हमारे लिए कौन से सबक हैं? क्या उनका व्यक्तिगत रुप से भारत के साथ कोई तालुक है भी या नहीं ? क्या उनके प्रधानमंत्री बनने से भारत को कही से किसी भी प्रकार का लाभ है ? आइए बिना भगदड़े किए सलीके के साथ सबकुछ समझते हैं – गौर कीजिए
1. पाकिस्तान के लिए ऋषि पाकिस्तान वंशी हैं. क्योंकि सुनक एक पंजाबी खत्री परिवार से हैं. उनके दादा रामदास सुनक मूलतः गुजरांवाला के रहने वाले हैं. और गुजरांवाला पड़ता है पाकिस्तान के पंजाब में.
2. केन्या के लिए ऋषि केन्यावंशी हैं. क्योंकि रामदास सुनक 1935 में पाकिस्तान के गुजरांवाला से केन्या चले गए थे. राजधानी नैरोबी में उन्होंने एक क्लर्क की नौकरी की और फिर वहीं बस गए. जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि किस तरह उस दौर में केन्या में ग़ुलाम भारत का कानून चलता था. रुपया भी चलता था. भारतीय केन्या और दूसरे अफ्रीकी देशों में व्यापारी बनकर गए. अंग्रेज़ हुकूमत के कर्मचारी बनकर गए. और जब मोंबासा के बंदरगाह तक युगांडा रेल लाइन डाली जा रही थी, तब बंधुआ मज़दूर बनकर भी गए. रामदास सुनक के केन्या जाने के बाद उनकी पत्नी, सुहाग रानी सुनक पहले दिल्ली आईं. और फिर 1937 में अपनी सास के साथ केन्या चली गईं.
3.तंज़ानिया के लिए, सुनक तंज़ानियावंशी हैं. क्योंकि ऋषि की मां उषा सुनक तांगान्यिका में पैदा हुई थीं, जो आगे चलकर तांज़ानिया का हिस्सा बना. उषा सुनक के पिता, माने ऋषि के नाना रघुबीर बैरी पंजाब के लुधियाना में पड़ने वाले करीमपुरा मोहल्ले से ताल्लुक रखते हैं. अपने समय के कई दूसरे भारतवंशियों की ही तरह रघुबीर बैरी भी पहले पूर्वी अफ्रीका गए, और फिर ब्रिटेन.
4.ब्रिटेन के लिए ऋषि एक ब्रिटिश नागरिक हैं. या कम से कम सुनक तो यही चाहते हैं कि ब्रिटिश नागरिक उन्हें इसी तरह देखें. रामदास सुनक के बेटे यशवीर सुनक 1960 के दशक में ब्रिटेन आ गए. ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस NHS में बतौर जनरल प्रैक्टिश्नर काम करना शुरू किया. यहीं उनकी मुलाकात साउथैंप्टन में एक फार्मेसी चला रहीं उषा से हुई. दोनों ने शादी की, और इस जोड़े के तीन बच्चे हुए – ऋषि, संजय और राखी. इन्हीं में से ऋषि की आज सब ओर चर्चा है.ऋषि की कहानी उस महाप्रवास की कहानी भी है, जो उपनिवेशवाद यानी colonialism ने जना. अंग्रेज़ों ने भारत से लोगों को ले जाकर पूर्वी अफ्रीका में बसाया. जब वहां केन्या और युगांडा जैसे देश आज़ाद होने लगे और ईदी अमीन जैसे शासक आए तो उन्होंने सारी समस्याओं की जड़ ”बाहरियों” को बता दिया. मूल निवासी और बाहरी वाली इस बहस की चपेट में यूरोपियन नागरिक तो आए ही. लेकिन उन भारतीयों को भी नहीं बख्शा गया जो अंग्रेज़ शासन के दौरान वहां आए. तब ये लोग ब्रिटेन गए. इसीलिए ब्रिटेन में आपको पूर्वी अफ्रीका से आए ऐसे लोगों की बहुत बड़ी आबादी मिलेगी, जिनकी जड़ें आधुनिक भारत या पाकिस्तान में हैं.
एक लंबा सफर ….
भारत, पाकिस्तान, केन्या, तंज़ानिया और ब्रिटेन. ऋषि की विरासत इन सारे देशों में मिले अनुभव और संस्कार से बनी है. इसीलिए ऋषि की पहचान में अपने लिए गर्व खोजते वक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है. नागरिकता और सांस्कृतिक पहचान की जिन सीमाओं में हम ऋषि को बांधने की कोशिश कर रहे हैं, उसे उनके परिवार की पीढ़ियों ने कई-कई बार तोड़ा है
एक लंबे सफर के बाद ब्रिटेन पहुंचे इन परिवारों ने बहुत मेहनत से वहां के समाज में अपने लिए जगह बनाई. हद दर्जे का नस्लभेदी व्यवहार सहा, और पूरा ध्यान लगाया उस एक चीज़ पर, जो उन्हें ऊपर उठा सकती थी – शिक्षा.यशवीर और उषा सुनक ने भी यही किया. एक-एक पैसा जोड़ा और अपने तीनों बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दिलाई. ऋषि सुनक की पढ़ाई विंचेस्टर कॉलेज, ऑक्सफोर्ट यूनिवर्सिटी और फिर स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से हुई है.करियर या जीवन की फिलॉसफी को लेकर ऋषि पहचान या नागरिकता को कितना मोल देते होंगे, ये उनके लिये फैसलों में साफ नज़र आता है. वो अमेरिकी इंवेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स में काम करते हैं. फिर फाइनांस की दुनिया में दो और संस्थाओं के लिए काम करते हैं – एक का ताल्लुक ब्रिटेन से, दूसरी का अमेरिका से. दोनों में उनका बॉस फ्रेंच मूल का एक शख्स था. इसके बाद वो एक भारतीय इंवेस्टमेंट फर्म कैटामरान वेंचर्स के लिए काम करने लगते हैं. और यहां तक आते-आते वो एक भारतीय महिला से शादी कर चुके होते हैं – अक्षता मूर्ति. इंफोसिस के लिए मशहूर उद्योगपति नारायण मूर्ति की बेटी. इसीलिए हमने कहा था, ऋषि को किसी एक भूगोल या पहचान में बांधना मुश्किल है. क्योंकि संभवतः वो खुद दुनिया को इस तरह नहीं देखते.अब इसमें भारत के लिए क्या सबक है? कौन भूल सकता है 2004 का वो दौर, जब कांग्रेस गठबंधन ने जीत दर्ज की थी. और स्वाभाविक रूप से सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे चलने लगा. तब क्या शरद पवार और क्या सुषमा स्वराज, सभी ने एक लकीर खींच दी थी. कि कोई विदेशी भारत का प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है. तब स्वराज ने क्या कहा था “श्रीमती सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई जाती है तो, उधर उनकी शपथ होगी और इधर मेरा त्याग पत्र होगा. ये लड़ाई में एक भिक्षुणी के रूप में लड़ूंगी, सफेद साड़ी पहनूंगी, अपने बाल कटा दूंगी, जमीन पर सोऊंगी और केवल भुने हुए चने खाऊंगी “
सुषमा स्वराज पार्टी लाइन से बंधकर ये कह रही थीं, या फिर वो चुनाव हार जाने की कड़वाहट थी, बताना मुश्किल है. लेकिन इस वाकये के बाद भी हमने बार-बार देखा कि भारतवंशियों की विदेश में उपलब्धि पर तो यहां खूब पटाखे दागे गए, लेकिन भारत की राजनीति में ”विदेशी” और ”बाहरी” एक गाली बना रहा. बात सिर्फ सोनिया गांधी या कांग्रेस की नहीं है. कमला हैरिस अमेरिका की राष्ट्रपति बन जाएं तो हमें अच्छा लगता है. लेकिन कोई अमेरिकी नागरिक अगर वहीं रहते हुए भारत के बारे में ट्वीट भी कर दे, तो हम नाराज़ हो जाते हैं.
हम सुनक की सफलता के जश्न में एक और बात भूल जाते हैं. कि भले उनके माता-पिता भारत आकर वैष्णों देवी के दर्शन करते हों, भले वो अपनी पत्नी के शहर बेंगलुरु घूमने आते रहें, भले वो गीता पर हाथ रखकर पद की शपथ लेते रहें, लेकिन वो हित साधेंगे अपने देश के, और उसका नाम भारत नहीं, ब्रिटेन है. तो ऋषि सुनक भारत के लिए वैसी ही नीतियां बनाएंगे, जो उनके देश को सूट करेंगी.ऋषि की सफलता के जश्न के साथ साथ ऋषि की कहानी सबकों स्वीकारना भी ज़रूरी है. और ये कहते हुए ज़रूरी है सावधानी. क्योंकि जो राजनीति साजिद जाविद और ऋषि सुनक के लिए जगह पैदा करती है, वही सुएला ब्रेवरमैन के लिए भी जगह पैदा करती है.