भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शुक्रवार को कांग्रेस द्वारा Places of Worship (Special Provisions) Act को समर्थन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने के कदम को हिंदुओं के खिलाफ एक खुली जंग की घोषणा करार दिया है. बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा कि कांग्रेस की याचिका हिंदुओं के ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारने के संवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश है. इस दौरान कांग्रेस को ‘नई मुस्लिम लीग’ की संज्ञा दे दी. इसके पहले जेपी नड्डा भी कांग्रेस पर मुस्लिम लीग के रास्ते पर चलने का आरोप लगा चुके हैं.
यह पहला मौका है जब BJP ने इस कानून पर अपना रुख फिर से स्पष्ट किया है. सवाल यह है कि अब केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में क्या रुख अपनाएगी. 1991 में नरसिंह राव सरकार के समय जब यह कानून पारित किया गया था, तब BJP ने इसका विरोध किया था. यह कानून 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के समय जो भी पूजा स्थल थे, उन्हें उसी रूप में बनाए रखने का प्रयास करता है. इसमें अयोध्या के विवादित स्थल को छोड़कर बाकी पूजा स्थलों के रूप को स्थिर रखने का प्रावधान था. इस कानून को संघ परिवार ने काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा की शाही ईदगाह पर दावा करने से रोकने के लिए लाया था.
वक्फ बोर्ड पर सवाल
कांग्रेस ने इस कानून का समर्थन करते हुए कहा कि यह कानून भारतीय धर्मनिरपेक्षता को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है और संविधान की मौलिक विशेषता के तहत साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए लागू किया जाना चाहिए. BJP ने इसके जवाब में कहा कि कांग्रेस ने भारत के विभाजन के समय धार्मिक आधार पर सहमति दी थी और बाद में वक्फ कानून लागू किया, जिसने मुसलमानों को अपनी इच्छानुसार संपत्तियों का दावा करने की अनुमति दी. इसके बाद कांग्रेस ने Places of Worship Act पारित किया, जिसने हिंदुओं को उनके धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने का अधिकार प्रभावी रूप से छीन लिया.
कांग्रेस का तर्क
कांग्रेस की याचिका में यह तर्क दिया गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है. साथ ही यह भी कहा गया कि न तो हिंदू कानून और न ही शरीयत आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों पर मस्जिदों के निर्माण की अनुमति देते हैं.
अलग राह पर RSS-बीजेपी
BJP का यह रुख विशेष रूप से RSS प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान के बावजूद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि हर मस्जिद के नीचे मंदिरों की तलाश करना जरूरी नहीं है. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार, जो योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में काम कर रही है, उन संपत्तियों और मंदिरों को फिर से प्राप्त करने का प्रयास कर रही है, जिन्हें हिंदू 1978 के दंगों के बाद छोड़ने को मजबूर हुए थे.