सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को न्यायाधीशों के आचरण और जीवनशैली पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि जजों को दिखावे से बचना चाहिए और एक संन्यासी की तरह जीवन जीना चाहिए. अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि जो लोग न्यायिक सेवा में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें सोशल मीडिया से दूरी बनानी चाहिए.
‘दिखावे के लिए न्यायपालिका में कोई जगह नहीं’मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के दो महिला जजों को बर्खास्त किए जाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘जज को संन्यासी की तरह जीना और घोड़े की तरह काम करना चाहिए. न्यायिक अधिकारी बनने के लिए कई त्याग करने होते हैं और दिखावे के लिए यहां कोई स्थान नहीं है.’
सोशल मीडिया से रहें दूर
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने सोशल मीडिया पर जजों की सक्रियता पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि जजों को फैसलों पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए. सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियां उनके निर्णयों को प्रभावित करने के रूप में देखी जा सकती हैं. सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने भी इस विचार का समर्थन करते हुए कहा कि जो लोग सोशल मीडिया से दूर नहीं रह सकते, उन्हें न्यायिक सेवा में शामिल नहीं होना चाहिए.
बर्खास्तगी का मामला और प्रदर्शन की जांच
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2023 में छह महिला जजों को सेवा से बर्खास्त किया था. इनमें से चार को बाद में बहाल कर दिया गया, लेकिन दो जजों – अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी – की बर्खास्तगी को वापस नहीं लिया गया. अदिति कुमार शर्मा की वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि उनकी बर्खास्तगी अनुचित है. उन्होंने बताया कि अदिति के प्रदर्शन में गिरावट उनके निजी और पारिवारिक समस्याओं के कारण हुई थी, जिनमें गर्भपात और भाई की कैंसर की बीमारी शामिल हैं.
दूसरी ओर हाईकोर्ट के वकील ने प्रदर्शन रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अदिति ने 2022 में अपेक्षित मामलों का निपटारा नहीं किया और उनकी केस डिस्पोजल दर काफी कम रही.
पुरुष और महिला जजों के लिए समान मापदंड की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि पुरुष और महिला जजों के लिए समान मापदंड लागू होने चाहिए. कोर्ट ने सवाल उठाया कि जिला न्यायपालिका के लिए प्रदर्शन लक्ष्य कैसे तय किए जाते हैं और क्या ये सभी के लिए समान रूप से लागू होते हैं.