अनमोल तिवारी, रायपुर| छत्तीसगढ़ प्रदेश ने 1 नवंबर को अपना 22वां स्थापना दिवस मनाया।वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर देश का 26वां राज्य बना था छत्तीसगढ़।छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य हैं,जिसे देश में महतारी यानी कि माँ का दर्जा दिया गया हैं।प्रदेश में आदिवासियों का ज्यादा प्रभाव होने के कारण शुरुआत से ही आदिवासियों की परंपरा और उनके संस्कृति को संरक्षित करने की बात राजनीतिक स्तर पर होती चली आ हैं।प्रदेश में आदिवासियों का प्रभाव एक बड़ा वजह हो सकता है कि, आदिवासियों के हिमायती बनने के होड़ में कोई भी शासन कसर छोड़ना नहीं चाहती।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्योत्सव 2022 का मंगलवार को शुभारंभ किया।साइंस कॉलेज मैदान स्तिथ “अरपा पैरी के धार” राजकीय गीत के साथ राज्योत्सव की शुरुआत हुई।राज्य के मुखिया भूपेश बघेल और विधानसभा स्पीकर डॉ चरण दास महंत ने दीप प्रज्वलित कर व आदिवासी नगाड़ा बजाकर आदिवासी नृत्य महोत्सव की विधिवत शुरुआत की।
इस दौरान मुख्यमंत्री समेत सभी अतिथियों का स्वागत राजकीय गमछा ओढ़ाकर किया गया।अवसर पर प्रदेश के संस्कृति मंत्री जो खुद आदिवासी समाज से आते है, अमरजीत भगत ने मुख्यमंत्री को आदिवासी जनजातिय समूह का प्रतिकचिन्ह मांदर भेंट की।गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के द्वारा सीएम और विधानसभा स्पीकर को गौर मुकुट भी पहनाया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ होने के बाद देश-विदेश के नृत्य कलाकारों ने अपने कला की प्रस्तुति दी।मुख्य मंच और दर्शक दीर्घा के बीच बनें एक रैंप से विभिन्न देशों और राज्यों से आये कलाकारों ने झांकी निकाली।सबसे पहले मिस्र देश के कलाकारों के द्वारा झांकी निकाली गई।इस दौरान बैंड के द्वारा सारे जहां से अच्छा की धुन बजाई गयी।
इसके बाद इंडोनेशिया,मालदीव,मोजाम्बिक,मंगोलिया, न्यूज़ीलैंड,रूस,रवांडा,सर्बिया और टोंगो गणराज्य के नृतक दल ने अपना जलवा दिखाया।इसी कड़ी में भारत के अलग-अलग राज्यों से आये लोक कलाकारों ने भी अपनी संस्कृति की झलक पेश की।आंध्र प्रदेश,अरुणाचल प्रदेश,असम,गुजरात,गोआ,जम्मू कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,केरल,कर्नाटक,लद्दाख जैसे राज्यों के कलाकारों ने अपने कला का प्रदर्शन किया और वहां मौजूद लोगों का मन मोह लिया। राज्योत्सव को संबोधित करते करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “नृत्य का इतिहास मनुष्य के इतिहास जितना पुराना हैं,एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ये चली आ रही है,इस तरह से आज हम यहां तक पहुंचे हैं।राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का उद्देश्य आदिम संस्कृति को बचाये रखना हैं,