रायपुर। एनएमडीसी केन्द्र सरकार की नवरत्न कंपनी है और पर्या-हितैषी खनिक के रूप में एनएमडीसी की विशिष्ट पहचान है। एनएमडीसी स्थापना काल से लेकर अबतक लगातार राज्य सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर स्थानीय क्षेत्रों के सर्वांगिक विकास में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करता रहा है। यही वजह है कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के मेडिकल कांलेज से लेकर एजुकेशन सिटी और स्वास्थ सुविधाओं से लेकर अधिकांश स्थानीय आधारभूत संरचनाओं के निर्माण व विकास में एनएमडीसी ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है। ऐसे में एनएमडीसी का लौह अयस्क परिवहन रोकना किसी भी रूप में राज्य के हित में नहीं है। परिवहन रूकने से राज्य को प्रतिदिन 27 करोड़ रूपए के राजस्व की हानि हो रही है।
यह सही नहीं है कि एनएमडीसी वन विभाग को ट्रांजिट फी का भूगतान नहीं कर रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि एनएमडीसी वर्ष 2012 से लगातार ट्रांजिट फी का भुगतान कर रहा है। विवाद भूतलक्षीय प्रभाव से फी का भुगतान करने को लेकर है। वनविभाग भूतलक्षीय प्रभाव से भुगतान चाहता है जिसपर उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दिया है जिसका सम्मान करना सभी पक्षों का धर्म है। वन विभाग द्वारा भूतलक्षीय प्रभाव से भुगतान की माँग उचित नही है। विदित हो कि भारत सरकार के अन्य सार्वजनिक उपक्रम द्वारा भी भूतलक्षीय प्रभाव से भुगतान नहीं किया जा रहा है।
एनएमडीसी द्वारा उक्त स्थिति से राहत के लिए उच्च न्यायालय बिलासपुर में रिट दायर कर राहत की मांग की गई थी। रिट पर विचार करते हुए माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा दिनांक 24.12.2022 के अपने आदेश के माध्यम से एनएमडीसी लिमिटेड को वनोपज (लौह अयस्क) के परिवहन हेतु अभिवाहन पास की बकाया राशि को वन विभाग के पास जमा करने पर स्थगन आदेश दिया था ।
न्यायालय के आदेश के बाद वन विभाग ने एनएमडीसी लिमिटेड के बचेली परियोजना से अनुज्ञा पत्र दिनांक 23.12.2022 को वापिस जमा करवा लिया और एनएमडीसी लिमिटेड के किरंदुल परियोजना से भी अनुज्ञा पत्र दिनांक 26.12.2022 को वापस जमा करवा लिया। इस कारण बचेली परियोजना से दिनांक 23.12.2022 और किरंदुल परियोजना से दिनांक 26.12.2022 से लौह अयस्क का परिवहन रूक गया है जिसके फलस्वरूप सरकार को प्रतिदिन क़रीबन 27 करोड़ रूपए का नुकसान रॉयल्टी, डी.एम.एफ. फंड, सेस फंड और अन्य शुल्क राशियों के रूप में हो रहा है।
इसी प्रकार केन्द्र सरकार को भी प्रतिदिन क़रीबन 2 करोड़ का नुकसान शुल्क राशि के रूप में हो रहा है। वही रेलवे विभाग की के. के. लाइन को लौह अयस्क का परिवहन ना होने के कारण प्रतिदिन क़रीबन 11 करोड़ रूपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है । इस संबंध यह भी उल्लेखित है कि सैकड़ों ट्रकों द्वारा लौह अयस्क का परिवहन होता है जिससे बस्तर संभाग के हजारों लोग लाभान्वित होते है उनका एवं ट्रक मालिकों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
परिवहन रूकने से वन विभाग को भी प्रति टन 57 रूपए यानी लगभग 50 लाख रूपए से अधिक का भी नुकसान हो रहा है । इस प्रकार लौह अयस्क के परिवहन रूकने से दंतेवाड़ा जिला से लेकर राज्य का और देश का व्यापक नुकसान हो रहा है। जिसके मद्देनजर एनएमडीसी लिमिटेड ने वन विभाग से अनुज्ञा पत्र को जारी करने की पूर्व की प्रक्रिया को को यथावत रखने का अनुरोध किया है। छत्तीसगढ़ राज्य सहित सभी का हित इसी में है कि माननीय उच्च न्यायालय क स्थगन आदेश के आलोक में परिवहन को बाधित न किया जाए और विवाद के मुद्दे को आपसी सहमति से सुलझा लिया जाए।
एनएमडीसी लौह अयस्क परिवहनः जरूरत आपसी समझ-बूझ की
राज्य शासन द्वारा ट्रांजिट पास शुल्क की भूतलक्षीय प्रभाव से मांग किए जाने से उत्पन्न विवाद में यद्धपि उच्च न्यायालय बिलासपुर ने एनएमडीसी के पक्ष में स्थगन आदेश दे दिया है लेकिन अभी भी परिवहन बाधित है। नतीजा यह हो रहा है कि राज्य सरकार को (27 करोड़), रेलवे (11 करोड़ प्रतिदिन) के साथ साथ एनएमडीसी को भी बड़ा नुकसान हो रहा है।
अब आवश्यकता इस बात की है कि वन विभाग एवं एनएमडीसी के उच्च अधिकारी आपस में बैठकर इस मसले का सर्वमान्य हल निकालें वह भी जल्द से जल्द ताकि लौह अयस्क परिवहन से जुड़े हजारों लोगों की न केवल रोजी-रोटी चलती रहे बल्कि परिवहन से राज्य शासन को मिलने वाले राजस्व के द्वारा प्रदेश के लाखों गरीब परिवारों तक विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सीधा लाभ भी पहुंच सके। इसलिए सभी पक्षों को तत्काल त्वरित हल की ओर बढ़ना चाहिए।