रायपुर : जल संसाधन विभाग में एक अधिकारी के भ्रष्टाचार की काली करतूतों ने पूरे विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. इस पूरे मामले में एक सेवानिवृत अधिकारी का नाम उजागर हो रहा है, जिसके करप्शन की लम्बी-चौड़ी दास्तां पूरे महकमे में चर्चा का विषय बनी हुई है. सूत्रों की मानें तो अधिकारी ने अपनी रसूख का धौन्स दिखाकर ठेकेदारों को मानसिक प्रताड़ित करने के साथ ही जल संसाधन विभाग में पात्रता प्रमाण पत्र जारी करने के नाम पर अवैध उगाही का गोरखधंधा चला रखा है. ऐसे में अब सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर किसके सरंक्षण में अधिकारी बेखौफ़ होकर इस गोरखधंधे को अंजाम दे रहा है? या फिर वो कौन है जिसका आशीर्वाद इस भ्रष्ट अधिकारी को मिल रहा है? हालांकि इस पूरे मामले की शिकायत शासन-प्रशासन से भी की गई है, लेकिन आज तक अधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई. तो चलिए पूरे मामले को विस्तार से समझते हैँ…
दरअसल, जल संसाधन विभाग में किसी भी निविदा में भाग लेने के लिए पात्रता प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है, जिसे 1 अक्टूबर से जारी किया जाता है. तथा यह 1 वर्ष के लिए वैद्य होता है.
विभाग ने इस कार्य हेतु सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता अरुण बडिया को मनमानी तरीके से पद पर बिठा कर रखा है. ऐसे में अधिकारी अपनी पूरी मनमानी चलाकर ठेकेदारों को परेशान करने में लगा हुआ है. और तो और सभी ठेकेदारों को अपने स्वार्थ के लिए तरह-तरह के डिमांड करते रहता हैं। बताया जाता है कि अधिकारी 1 अक्टूबर को जारी होने वाले प्रमाण पत्र को 2-3 महीने तक बहाने बाजी कर लटकाए रखता है, जिसके चलते ठेकेदार निविदा से चूक जाते हैं तथा प्रमाण पत्र की वैधता मात्र 9-10 महीने की रह जाती है. वहीं सी. ए. द्वारा जारी टर्नओवर प्रमाण पत्र तथा बेलेंस शीट ऑडिट रिपोर्ट आदि प्रमाणित दस्तावेज देने के बाद भी 26AS तथा आयकर विभाग द्वारा साल भर का जीएसटी रिटर्न आदि मांगे जाते हैं, स्वाभाविक है कि इतने दस्तावेज में कहीं ना कहीं साधारण अंतर आता है जिसके कारण प्रकरण रोक दिया जाता है. यही नहीं अधिकारी बड़िया के द्वारा अपने ही विभाग के कार्यपालन यंत्री द्वारा जारी भौतिक व वित्तीय प्रमाण पत्र को मान्य नहीं किया जाता है। उनका अपना स्वार्थ पूरा होने पर कुछ भी मान्य हो जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि एक सेवानिवृत अधिकारी जिसे ना तो अपने नौकरी का डर है, ना ही किसी कार्यवाही का डर, वो बेखौफ़ होकर अपनी मनमानी एवं धांधली से अपना स्वार्थ पूरा करने में लगा हुआ है. जल संसाधन विभाग में पात्रता के लिए 500 से ज्यादा ठेकेदार आते हैं. ऐसे में बडिया की कमाई का आकलन खुद ही किया जा सकता है. विडंबना तो ये है कि इतनी बड़ी लापरवाही और मनमानी के उजागर होने के बावजूद आला अधिकारियों के कानों में जूँ तक नहीं रेंग रही है.