jagdalpur: छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने पूर्व मंत्री केदार कश्यप के बयानों का पलटवार किया है। कवासी लखमा ने कहा कि, मैं तो मां का दूध पीया हूं। इसलिए कहा था कि यदि 2 तारीख को आरक्षण का मामला विधानसभा में पास नहीं होगा तो मैं इस्तीफा दूंगा। मैंने अपना काम कर दिया। बस राज्यपाल का मुहर लगना बाकी है। यदि केदार कश्यप ने भी अपनी मां का दूध पीया है तो वे भी आरक्षण के मामले को लेकर राज्यपाल के पास जाएं। उनसे विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की मांग करें।
आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने पत्रकारों से खास बातचीत की है। उन्होंने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि, केदार कश्यप को बोलने में थोड़ी शर्म रखनी चाहिए। बस्तर के 3000 स्कूल बंद करवा दिए। ताड़मेटला में 300 घर जला दिए। कई आदिवासियों को मरवा दिए हैं। क्या केदार कश्यप खुद आदिवासी नहीं है। उन्हें आदिवासियों की भलाई नहीं करनी है क्या? यदि करनी है तो वे खुद भी राज्यपाल के पास इस मामले को लेकर जाएं। मेरा सवाल यही है कि आखिर वे जा क्यों नहीं रहे हैं।
पत्रकारों का सवालों का जवाब देते आबकारी मंत्री कवासी लखमा।
आदिवासियों को हक दिलाने लड़ेंगे लड़ाई
आबकारी मंत्री का कहना है कि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके भी आदिवासी हैं। वे मध्यप्रदेश की बेटी हैं। आदिवासियों की भलाई करना जानती हैं। मुझे विश्वास है आज नहीं तो कल हमारा काम जरूर करेंगी। आरक्षण के मामले को आदिवासियों को उनका हक दिलाने मैं हाथ जोड़कर दो बार उनके पास गया हूं। जरूरत पड़ी तो और जाऊंगा। यदि वे नहीं करती हैं तो भारतीय जनता पार्टी इसकी जिम्मेदार होगी। फिर हम आरक्षण दिलाने के लिए सड़क की लड़ाई जितना हो सके लड़ेंगे। आदिवासियों को उनका हक जरूर मिलेगा।
केदार कश्यप ने दिया था यह बयान
कुछ दिन पहले पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा था कि, कवासी लखमा बोले थे 2 तारीख तक यदि पूरा आरक्षण नहीं दिला पाऊं तो अपने पद से इस्तीफा दे दूंगा। अब तारीख निकल चुकी है। यदि कवासी लखमा असली मां और असली बाप के बेटे हैं तो वे फौरन पद से इस्तीफा दें। आबकारी मंत्री के बयानों के हिसाब से आज छत्तीसगढ़ में आरक्षण लागू नहीं हो पाया। इसी कारण लोगों की विभिन्न पदों में भर्ती नहीं हो पा रही है और न ही नियुक्तियां हो पा रही है। पूरे छ्त्तीसगढ़ में आरक्षण की स्थित शून्य हो गई है।
केदार कश्यप
राज्यपाल ने अब तक नहीं किया है हस्ताक्षर, इस वजह से बयानबाजी जारी
छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित आरक्षण विधेयकों पर राज्य सरकार और राजभवन के बीच टकराव बढ़ने के आसार बन रहे हैं। विधेयक पारित होने के एक हफ्ते बाद भी राज्यपाल ने इसपर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इस बीच 3 दिन पहले खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने आदिवासी समाज के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्यपाल अनुसूईया उइके से मुलाकात की थी। उन्होंने राज्यपाल से आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर का आग्रह किया। अमरजीत भगत का कहना है कि राज्यपाल ने एक-दो दिन में हस्ताक्षर करने का आश्वासन दिया है।
मंत्री रविंद्र चौबे, कवासी लखमा ने विधेयक पारित होते ही राज्यपाल से मुलाकात की थी।
विधानसभा के विशेष सत्र में दो अक्टूबर को आरक्षण का नया अनुपात तय करने वाले दो संशोधन विधेयक पारित किये गये थे। विधेयक पारित होने के बाद संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे, विधि मंत्री मोहम्मद अकबर, आबकारी मंत्री कवासी लखमा, खाद्य मंत्री अमरजीत भगत और नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया उसी रात को राजभवन पहुंचे थे। वहां उन्होंने राज्यपाल अनुसूईया उइके से मुलाकात कर विधानसभा में पारित दोनों विधेयकों की प्रतियां सौंपकर हस्ताक्षर का आग्रह किया। उस समय राज्यपाल ने नियमानुसार कार्रवाई की बात कही थी।
अगले दिन मीडिया से बातचीत में राज्यपाल ने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही थी। सोमवार को दिन भर राजभवन के कानूनी सलाहकारों और अफसरों की टीम विधेयक की समीक्षा में लगी रही। मंगलवार को राज्यपाल ने सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव कमलप्रीत को बुलाकर चर्चा की। उन्होंने उनसे पूछा कि इस कानून को कोई अदालतों में चुनौती दे तो उससे निपटने के लिए सरकार के पास क्या इंतजाम हैं।
जवाब में कहा गया, महाधिवक्ता का कार्यालय ऐसी किसी चुनौती से निपटने को तैयार है। उसके बाद से यह विधेयक राज्यपाल के पास ही पड़ा है। उसमें फिलहाल कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है। बुधवार को राज्यपाल से मुलाकात के बाद मंत्री अमरजीत भगत ने कहा, बातचीत सकारात्मक रही है। राज्यपाल की ओर से जिस तरह का आश्वासन दिया गया है उससे लग रहा है आरक्षण का फ़ायदा लोगों को बहुत जल्द मिलेगा। उन्होंने कहा, राज्यपाल ने एक दो दिन के भीतर हस्ताक्षर करने का आश्वासन दिया है। राजभवन की ओर से अभी इसपर कोई प्रतिक्रया नहीं आई है
राजभवन में देरी से सरकार की चिंता बढ़ी
संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने इस मसले पर कहा था, यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था। महामहिम ने स्वयं कहा था कि विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण के पक्ष में कानून बनना चाहिए। उन्होंने स्टेटमेंट भी दिया था कि जैसे ही बिल उनके पास आएगा वे तत्काल अनुमति जारी कर देंगी। इस आधार पर हम पांच मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने उसी दिन राजभवन जाकर विधानसभा की कार्रवाई से उन्हें अवगत कराया था।
तीसरा दिन( जिस दिन मंत्री ने यह बयान दिया) हो गया। मुझे लगता है कि महामहिम को भी इसमें शीघ्रता करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के हजारों-हजार लोगों की नियुक्तियों, भविष्य और अवसर का सवाल है। उम्मीद है कि आज हस्ताक्षर हो जाएगा। लेकिन महामहिम के दफ्तर में केवल लीगल ओपिनियन में तीन-तीन दिन लग जाना हम लोगों को चिंतित करता है।
यहां से शुरू हुआ है यह विवाद
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में फैसला सुनाते हुए छत्तीसगढ़ में चल रहे 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया था। उसके बाद से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण रोस्टर नहीं बचा। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सरकार ने एक-दो दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संबंधी दो संशोधन विधेयक पारित कराये। इसमें आरक्षण को बढ़ाकर 76% कर दिया गया था। इसमें अनुसूचित जाति को 13%, अनुसूचित जनजाति को 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 4% आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है। राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होने से यह विधेयक कानून नहीं बन पा रहा है।