कवर्धा। भोरमदेव अभयारण्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बड़ी मात्रा में फेंकी गई दवाओं की बोतल और गोलियां मिली है. सर्दी-खांसी व बुखार के मरीजों को दी जाने वाली यह दवाइयां सरकारी संस्था सीजीएमएससी द्वारा सरकारी अस्पतालों में वितरित की जाती है. बड़ी मात्रा में जंगल में इन दवाओं के मिलने से चर्चाओं का बाजार गर्म है.
जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर भोरमदेव अभयारण्य के नक्सल प्रभावित मादाघाट के जंगलों में बड़ी संख्या में ब्रोमेक्सिन हैड्रोक्लोराइड, पैरासिटामाल, प्रोमेथजीन, मल्टीविटामिन सिरप, एरीथ्रोमाइसीन, पैरासिटामाल की गोलियां पाई गई हैं. इन दवाओं में सीजीएमएससी का सील व मार्का लगा हुआ है. खांसी की म्यूकोलिटिक सीरप ब्रोमेक्सिन हैड्रोक्लोराइड का बैच नम्बर BHS20048 उत्पादन तिथि 12/2020 और एक्सपाइरी डेट 5/2023 है.
कयास लगाए जा रहे हैं कि इन दवाइयों या तो नक्सलियों ने फेंका होगा, या फिर स्वास्थ्य विभाग के लापरवाह कर्मियों ने या नशेड़ियों के गैंग ने फेंका होगा, क्योकि इनमें से सर्दी-खांसी व एलर्जी की दवाओं ब्रोमेक्सिन और प्रोमेथजीन का उपयोग नशेड़ी नशे के लिए भी करते हैं. वहीं एरीथ्रोमाइसीन का उपयोग एन्टीबायोटिक के रूप में किया जाता है.
सरकारी संस्था सीजीएमएससी की ओर से वितरित की जाने वाली इन दवाओं को सरकारी अस्पताल के साथ क्षेत्रों की मितानिन, एएनएम और महिला हेल्थ वर्कर मुफ्त वितरित करती हैं. अब सवाल उठता है कि लाखों रुपए की यह गोलियां कहां से आई किसके द्वारा मादाघाट के प्रतिबंधित जंगलों में फेंकी गई, इनका वितरण क्यों नहीं कराया गया.
सरकार की ओर से नि:शुल्क बांटने वाली दवाइयों को फेंके जाने की जांच होगी या नहीं यह समय बताएगा, लेकिन जिले का स्वास्थ्य विभाग किसी न किसी कारण से हमेशा चर्चा में बना रहता है. चाहे वह जिला अस्पताल की छत में लाखों की नई मशीनों को कबाड़ के रूप में फेंकने का मामला हो, या फिर अब नक्सल प्रभावित क्षेत्र में दवाओं का जखीरा मिलना हो. किसी साजिश की ओर इशारा कर रही है.