बिलासपुर। एक महत्वपूर्ण फैसले में, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 24 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी है। अदालत ने पीड़िता के प्रजनन अधिकारों की पुष्टि की है और इस बात पर जोर दिया है कि किसी भी महिला को बलात्कार के माध्यम से गर्भ धारण करने वाले बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु ने कहा कि इस तरह की गर्भावस्था गंभीर मानसिक पीड़ा का कारण बनती है और पीड़िता के सम्मान और स्वायत्तता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
क्या है पूरा मामला ?
पूरा मामला सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का है। जहां के डोंगरीपाली पुलिस स्टेशन में एक नाबालिग के साथ बलात्कार के मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी। जिसके बाद नाबालिग बलात्कार पीड़िता ने अपनी गर्भावस्था को चिकित्सा रूप से समाप्त करने की इजाजत मांगते हुए अदला में याचिका दायर की थी।
अधिवक्ता श्री बसंत देवांगन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि उप महाधिवक्ता प्रवीण दास राज्य के लिए उपस्थित हुए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गर्भावस्था को जारी रखने से बहुत अधिक मानसिक और सामाजिक आघात हुआ, जिससे गर्भपात आवश्यक हो गया।
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने 30 दिसंबर, 2024 को रायगढ़ के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) को याचिकाकर्ता की जांच करने का निर्देश दिया। 1 जनवरी, 2025 को प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट में भ्रूण संबंधी कोई विसंगति नहीं बताई गई, लेकिन गर्भावस्था जारी रहने पर याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले संभावित जोखिमों पर प्रकाश डाला गया।
न्यायालय ने कहा:
“बलात्कार के कारण गर्भधारण से होने वाली पीड़ा गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाती है। बलात्कार की शिकार महिला को यह तय करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए कि वह गर्भावस्था जारी रखे या उसे समाप्त करे।”
प्रजनन स्वायत्तता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, निर्णय में कहा गया:
“बलात्कार की शिकार महिला को बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। ऐसी मजबूरी से पीड़ित महिला की मानसिक पीड़ा और बढ़ जाती है और उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।”